Sunday, December 14, 2008

एक सैनिक की कहानी

दस महीने बाद लौटा था
घर में थी खुशियां भरी
नए नए सपने सज रहे थे
बाकी थी छुट्टियां पड़ी

इक दिन पर, एक सरगाम आया
साथ में ये पैगाम लाया
देश के रक्षक जल्दी आजा
मां धरती खतरे में पड़ी
सीमा पर है फिर से आई
जंग की कातिल घड़ी

बात ही थी ऐसी आई...
दिल में लाई घहराई
गर्व से सर ऊंचा उठा
पर..आखों में आंसू भर लाई...

दिन अब बिछड़ने का आया
कह के मां को समझाया
पत्नी के आंसू नहीं थमते
उसे प्यार से बतलाया
जाऊं कहीं मैं रहूं कहीं मैं..
पल भर तुझसे दूर नहीं मैं
चांद मेरी लिए तेरा आंचल
बादल, तेरा गहना
तुमने जब जब याद किया है
और जब मेरा नाम लिया है
हवा तेरा संदेश है लाई
खुशबू तुम्हारी साथ है आई
अच्छा तो मैं अब चलता हूं..
जल्द ही फिर तुमसे मिलता हूं...


कहके..
निकल पड़ा वो देश का लाल
छोड़कर ममता का दुलार
पहुंचा वहां..तो था ऐसा मंजर
चारों तरफ की धरती ..बंजर
हर तरफ थे सिर्फ धमाके...
बम और गोलियों की आवाज़े
दुश्मनी का था धूंआ छाया
दिन में भी था रात का साया

पर हमने हार कब थी मानी
रगों में था खून..ना की पानी
भूल गए मंदिर गुरूदवारा
एक हुआ था देश आज सारा...
दिल में परस्पर बोल ये आए
इस धरती पर आंच ना आए
चाहे जान भले ही जाए
फिर जंग में कूद गया दीवाना़
नशा ना नांपे आज कोई पैमाना
दो दो हाथ करे फिर उसने
पूछा..आए कैसे तुम इस मंदिर में..
अब ना बुरी नजर इधर डालना
भूल कर भी यहां ना आना

था दिया धकेल सीमा के पार
फिर प्रेम से गले मिले सब यार
पर...
जब गोली चलती थी सीमा पर
मांग उजड़ती थी नगरों में
बच्चें मरते थे सरहदों पर
मां ढूंढती गांव की डगरों में...

बात एक आई थी उस सैनिक के मन में...
क्या ये दो देश फिर से मिल पाएंगे
क्या सरहद पर दोस्ती के दिए जल पाएँगे
या ये बस यूं ही तड़पाएंगे
क्या नहीं जुड़ेगे इनके दिल के धागे
ये है नदी के दो बहते धारे
हम इस किनारे ..
तुम उस किनारे...
रिश्ते बनाते है
रिश्ते मिटाते है.
सावन में कागज के घर ये बनाते है..
अपने लिए ही तूफां उठाए
अपना घरौदा खुद ही मिटांए

पर फिर वो बोला
एक दिन ऐसा जरूर आएगा
जब हर सैनिक अमन की बासुंरी बजाएंगा
अब्र का हर टुकड़ा खुशी का सावन लेकर आएगा
दुश्मन भी दोस्त बनकर गले लग पाएगा
तब हर सैनिक का एक ही काफिला होगा
सरहद पर दोस्ती का दीया जगमगाएगा
सरहद पर दोस्ती का दीया जगमगाएगा